भद्रा के संबंध में जानकारी –

भद्रा के संबंध में जानकारी:

पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनि की बहन है। इसका स्वभाव भी शनि की तरह कड़क था। ऐसा माना जाता है कि भद्रा, दैत्यों को मारने के लिए गर्दभ मुख, लंबी पूंछ और तीन पैर से युक्त उत्पन्न हुई। भद्रा जन्म लेते ही यज्ञों में विघ्न डालकर और मंगल-कार्यों में उपद्रव करके सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। उसके दुष्ट स्वभाव को देख कर सूर्य देव को उसके विवाह की चिंता हुई कि इस दुष्टा और कुरूपा कन्या का विवाह कैसे होगा? सभी सूर्य देव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा चुके थे। सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श मांगा तब ब्रह्मा जी ने इसके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए काल गणना यानी पंचांग में स्थान दिया और कहा कि भद्रे तुम बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में निवास करोगी तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे तुम उन्ही में विघ्न डालना या जो तुम्हारा अनादर करे तुम उन्ही के कार्य बिगाड़ना। इस प्रकार उपदेश देकर बृह्मा जी अपने लोक चले गए और तब से भद्रा अपने समय में ही शुभ कार्य करने‌वाले प्राणियों को कष्ट देती है।
जैसा हम सभी जानते हैं कि हिन्दू पंचांग के पांच अंगो में करण एक महत्वपूर्ण अंग है। यह तिथि का आधा भाग होता है। कुल 11 करण होते हैं। 7 चर करण- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि; 4 अचर करण- शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। 7 चर करणों में सातवें करण का नाम विष्टि है। यह सदैव गतिशील रहती है। पंचाग शुद्धि में भद्रा को देखना खास महत्व रखता है। यूं तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली है, पर इसके विपरीत भद्रा में शुभ कार्य करना निषेध बताया गया है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों में भद्रा अलग-अलग लोक में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है तब शुभ कार्य करने पर यह उनका नाश करने वाली मानी गई है।

भद्रा का वास:
मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार जब चन्द्रमा 1,2,3,8 राशि में हो तब भद्रा का निवास स्वर्ग में होता है और जब चन्द्रमा 6,7,9,10 राशि में हो तब भद्रा का निवास पाताल में होता है। जब चन्द्रमा 4,5,11,12 राशि में हो तब भद्रा भू-लोक पर निवास करती है। शास्त्रों के अनुसार धरती लोक की भद्रा ही सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है।

भद्रा प्रत्येक पक्ष में चार बार आती है:

  1. कृ.प. की 3 को उत्तरार्ध में
  2. कृ.प. की 7 को पूर्वार्ध में
  3. कृ.प. की10 को उत्तरार्ध में
  4. कृ.प. की 14 को पूर्वार्ध में
  5. शु.प. की 4 को उत्तरार्ध में
  6. शु.प. की 8 को पूर्वार्द्ध में
  7. शु.प. की 11 को उत्तरार्ध में
  8. शु.प. की 15 को पूर्वार्द्ध में

परन्तु इनमें भी जब चंद्रमा 4,5,11,12 राशि में रहता है तब ही वह पृथ्वी लोक में असर करती है।

भद्रा संबंधी परिहार:
भद्रा जिस लोक में रहती है वहीं प्रभावी रहती है। जब चंद्रमा 4,5,11,12 राशि में होता है तभी वह पृथ्वी पर असर करती है अन्यथा नहीं।
-तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा दिन की तथा तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा रात की कहलाती है। जब दिन की भद्रा रात में और रात्रि की भद्रा दिन में आए तब इसे शुभ मानते हैं।
-भद्रा की 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में रहती है।
-यदि भद्रा के समय में कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी अवश्य त्याग देना चाहिए।

भद्रा के प्रमुख दोष :-

  • जब भद्रा मुख में होती है तो कार्य का नाश।
  • जब भद्रा कंठ में होती है तो धन का नाश।
  • जब भद्रा हृदय में होती है तो प्राण का नाश।
  • जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।

भद्रा मुख:-
शु.प. की चतुर्थी के 5वें प्रहर की, अष्टमी के 2रे प्रहर की, एकादशी के 7वें प्रहर की तथा पूर्णिमा के 4थे प्रहर की प्रथम पाँच घड़ियों में भद्रा मुख होता है।
इसी तरह कृ.प. की तृतीया के 8वें प्रहर की, सप्तमी के 3रे प्रहर की, दशमी के 6ठे प्रहर की और चतुर्दशी के 1ले प्रहर की प्रथम पांच घड़ियों में भद्रा मुख होता है।

भद्रा पुच्छ:
शु.प. की चतुर्थी के 8वें प्रहर की, पूर्णिमा की 3रे प्रहर की अंतिम 3 घड़ी भद्रा पुच्छ होती है।

भद्रा में वर्जित कार्य:
मुहुर्त्त चिंतामणि के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के शुभ कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं।

भद्रा में किए जाने वाले कार्य:
भद्रा में कई कार्य ऎसे भी है जिन्हें किया जा सकता है जैसे अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग, आप्रेशन करना, शत्रु का उच्चाटन, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना आदि।

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